भारत में ग़रीबी बहुत व्यापक है जहाँ अन्दाज़े के मुताबिक़ दुनिया की सारी ग़रीब आबादी का तीसरा हिस्सा रहता है। 2010 में विश्व बैंक ने सूचना दी कि भारत के 32.7% लोग रोज़ना की US$ 1.25 की अंतर्राष्ट्रीय ग़रीबी रेखा के नीचे रहते हैं और 68.7% लोग रोज़ना की US$ 2 से कम में गुज़ारा करते हैं।
योजना आयोग के साल 2009-2010 के गरीबी आंकड़े कहते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है।
यानि अब शहर में 28 रुपए 65 पैसे प्रतिदिन और गाँवों में 22 रुपये 42 पैसे खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता. नए फार्मूले के अनुसार शहरों में महीने में 859 रुपए 60 पैसे और ग्रामीण क्षेत्रों में 672 रुपए 80 पैसे से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है।
इससे एक बार फिर उस विवाद को हवा मिल सकती है जो योजना आयोग द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर किए गए हलफनामे के बाद शुरू हुआ था। इसमें आयोग ने 2004-05 में गरीबी रेखा 32 रुपये प्रतिदिन तय किए जाने का उल्लेख किया था।
वर्तमान में 29.8 प्रतिशत भारतीय आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है। गरीब की श्रेणी में वह लोग आते हैं जिनकी दैनिक आय शहरों में 28.65 रुपये और गांवों में 22.24 रुपये से कम है। क्या आपको लगता है कि यह राशि ऐसे देश में एक दिन के भी गुजारे के लिए काफी है जहां खाने की चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं? इससे यह साफ होता है कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। सांख्यिकीय आंकड़े के अनुसार 30 रुपये प्रतिदिन कमाने वाला भी गरीब नहीं है, पर क्या वह जीवन की उन्हीं कठिनाइयों का सामना नहीं कर रहा?
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